बराबर वाली खाली बेंच - A Love Story
A Beautiful Love Story
[This post includes लव स्टोरी इन हिंदी रोमांटिक or love story in hindi heart touching or pyar ki story / pyar ki ek kahani/प्यार की कहानी ]
आयशा जो कि एक मुस्लिम वृहद्द परिवार में जन्मी और एक छोटे से घर में पली बढ़ी लड़की है जिसकी बाहरवीं की परीक्षा पास करने के बाद डिग्री Collage में एडमिशन हुआ है, और वो अपने भविष्य के सपनों को अपने आँखों में भरकर चल पड़ी है. उन्हें सच करने का हौसला लिए, चूँकि पहला दिन था तो आयशा को इस नयी सी दुनिया में खुद को ढालना था, नए दोस्त बनाने थे और बहुत कुछ सीखना था, तो वो जाकर अपनी क्लास में बेंच पर बैठ गई और इंतज़ार करने लगी कि कोई लड़की उसकी बराबर वाली बेंच में आकर बैठ जाए ताकी अब तलक जो उसके मन में अकेलेपन का एक घना अंधेरा छाया हुआ है, वो जल्दी से छट जाए. इसी इन्तज़ार में वो बैठी रही और बाकी लोगों का आना जाना देखती रही यह सब लगातार बना रहा लेकिन उसके बराबर वाली बेंच में कोई भी दूसरी लड़की आकर नहीं बैठी........
अब ये क्यू हुआ शायद ना ही आयशा जान पाई और ना ही कोई और क्यूँकि कोई और तो अब तलक आयशा की बराबर वाली बेंच में आकर बैठा ही नहीं था, बहरहाल आयशा ने क्लास attend करी और परेशान होकर लंच टाइम में अपने लंच का डिब्बा नहीं खोला क्यूँकि आज आयशा कुछ उदास थी, वो सुबह से अकेले बैठ कर उस बराबर वाली बेंच को तके जा रही थी जहाँ उस खाली बेंच के अलावा और दूसरा कोई नहीं था, बहरहाल क्लास ख़तम हुई और आयशा घर को चल पड़ी और बेमन बस यही सोचती रही कि आज उसका कोई भी दोस्त नहीं बन पाया, मुह लटकाए वो घर की तरफ चल दी...
अगली सुबह नयी सूरज की किरण के साथ आयशा फिर से Collage की तरफ चल पड़ी लेकिन आज उसका चेहरा कल से थोड़ा उतरा हुआ था क्यूंकि उसका कल किसीसे भी परिचय नहीं हो पाया था, Collage पहुँचने के बाद आयशा फिर से अपनी जगह जाकर बैठ गई और फिर से इन्तज़ार करने लगी कि आज शायद कोई आकर उसकी बराबर की बेंच में बैठेगा, जो कि खाली बेंच उसे कल से घूर रही थी, लेकिन आज भी कोई नहीं आया,.. और ऐसा हफ्ता भर चलता गया, सो आयशा ने समझ लिया कि कोई भी उससे दोस्ती करने में interested नहीं है तो उसने खुद की ही compony को एंजॉय करने का फैसला किया और पढ़ाई करने लगी.. अब तकरीबन रोज ही ऐसा होता और आयशा अपनी जगह आकर बैठ जाती और कोई भी उसके साथ नहीं बैठता.
अगले दिन फिर एक नयी सुबह के साथ आयशा उठी और तैयार होकर Collage को चली गयी और अपनी क्लास में book खोलकर अपनी जगह बैठ गई, और पढ़ने लगी... अभी वो अपने algorithm के सवालों का जवाब ढूंढने में लगी ही थी कि, पीछे से किसीने आवाज़ दी...........आयशा....!
आयशा ने उस आवाज़ का सुना का अनसुना कर दिया क्यूँकि वो जानती थी कि कोई भी उससे बात करने में क्लास में interested नहीं है तो ये उसके कानों का वहम ही होगा...सो वो अपने कामों में लगी रही....तभी अचानक फिर से पीछे से आवाज़ आई....हैलो आयशा...! और बस यह वही पल था जब आयशा ने अपनी बिजली की रफ्तार से चलती पेन, जो कि मैथ्स की alogorithm को सुलझाने में लगी हुई थी को रोक दिया... और पलट कर देखना चाहा कि आखिर अचानक इतने दिनों बाद किसने उसे उसके नाम से पुकारा, जबकि कोई उससे बात भी नहीं करना चाहता था, और जैसे ही उसने पलटकर देखा तो वो स्तब्ध रह गई.
भूरे घुंघराले बाल, किसी झील की नीली पानी की सारी सुर्खियाँ लिए दो आँखें जो किसी को भी अपनी तरफ खींच ले, एक जैकेट जिसके पीछे से एक टोपा लटक रहा था, गहरा नीला रंग लिए trouser पहने और बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व लिए एक लड़का सामने खड़ा था....और आयशा उसे एक टक देखे ही जा रही थी, ये वो पल था जब आयशा इतने समय बाद अपने आप को उस Collage का हिस्सा मान पा रही थी, क्यूँकि इससे पहले तो आजतक किसीने उससे बात भी करना यहाँ तक कि उसका नाम भी जानना जरूरी नहीं समझा था, और आज उसे कोई उसके नाम से पुकार रहा था.....ये उसके लिए एक ऐसा लम्हा था जब उसे ऐसा लग रहा था मानो सारी खुशिया उस ईश्वर ने एक साथ उसकी झोली में डाल दी हो.....तभी अचानक एक बार फिर उस लड़के ने कहा आयशा क्या मैं तुम्हारे साथ आकर बैठ सकता हूं.
तभी आयशा ने एक हल्का सा इशारा अपनी गर्दन को नीचे झुकाकर किया और उसे इज़ाज़त दे दी... और वो लड़का भी अपनी book पकड़कर आयशा के बराबर वाली बेंच पर आकर बैठ गया, वही बेंच जो इतने लंबे समय से उसका इंतज़ार कर रही थी, जो रोज आयशा की निगाहों को देखकर हर बार उदास हो जाती थी...मगर आज ये दोनों ही खुश थे....तभी उस लड़के ने धीमी आवाज में कहा, "मेरा नाम अमीश है...और मैं रोज तुमको देखता हूँ तुम रोज अकेले ही बैठती हो क्या दोस्त बनाना पसंद नहीं. है तुम्हें.?" इतना कहते ही आयशा ने जवाब दिया, "यहाँ आज भी लोग दोस्तों को उनकी जाति धर्म उनके बैंक बैलेंस, खानदान और हैसियत देखकर बनाते हैं, कहाँ लोगों को फुर्सत है इस ढोंगी समाज मे एक अच्छे दोस्त की... हिंदू अपना धर्म बचा रहा है, मुस्लिम अपनी कौम और ऐसे ही न जाने कितने आडंबर चले ही जा रहे हैं, और लोग कहते हैं कि हम पढ़े लिखे हैं सब समझते हैं...."
थोड़ी देर की सुनसानी के बाद अमीश धीमे से मुस्कुराया और बोला आज लंच साथ में खाए.....आयशा उसे देखकर जितनी हैरान थी उतनी ही खुश भी, क्यूँकि पहली बार किसीने उससे बात की और खाना भी साथ में खाने की बात की तो वो उसे मना भी नहीं कर पायी. क्लास खत्म हुई और दोनों अपने-अपने घरों को चल दिए.... लेकिन आज आयशा ये सोच रही थी कि आज उसकी जिंदगी ने अचानक ऐसा मोड़ कैसे ले लिया, इतने समय से जब लोग उससे बाते भी करना पसंद नहीं कर रहे थे तो आज अमीश कैसे उससे बात करने चला आया, उसका जीवन जो बहुत ही साधारण चल रहा था, अचानक इतना रंगीन कैसे हो गया |
अगली सुबह जब आयशा क्लास पहुँची तो उसने देखा कि अमीश वहाँ पर पहले से ही बैठा हुआ है और उसका इंतज़ार कर रहा है, आयशा अपनी जगह जाकर बैठ गई और दोनों ने एक दूसरे को hello किया, और बाते करने लगे.. अब ये सिलसिला रोज यूँ ही चलने लगा कभी अमीश आयशा के लिए लंच में जलेबीयां बनाकर लाता तो कभी आयशा उसके लिए अपने हाथों से बिरयानी...... अब धीरे धीरे दोनों. में बाते होने लगी और एक दूसरे को दोनों. पसंद भी करने लगे.. दिन अच्छे चलने लगे थे, आयशा के पास अब कोई ऐसा था जो उसके साथ पूरे Collage साथ रहता, साथ पढ़ता, साथ बाते करता, साथ सिनेमा देखने जाता, दोनों में नजदीकियाँ बढ़ने लगी,
अगली सुबह जब आयशा Collage पहुँची तो उसने देखा कि आज अमीश अपनी जगह पर रोज की तरह बैठा हुआ था पर आज कुछ मायूस और घबराया सा नजर आ रहा था, आयशा ने पूछा, ""क्या हुआ इतना घबराया सा क्यूँ है?? तबीयत ठीक है,?" तभी अमीश बोला, "हा मैं ठीक हुँ, तू बैठ मैं बस अभी आया..."और वहां से चला गया...आयशा उसे देखकर कुछ भी समझ नहीं पायी और किताबें और समान डेस्क में रखने लगी और जैसे ही आयशा ने डेस्क में हाथ डाला तो चौंक गयी डेस्क रोज की तरह आज खाली नहीं थी | वहाँ पर एक चॉकलेट के साथ गुलाब का एक फूल लपेटकर एक खत में बंद था....
जिसमें लिखा था...
"आयशा मैं तुम्हें बता नहीं पाया पर एक बात है जो मुझे तुमसे कई समय से कहनी थी और वो यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तब से जब से तुमने इस क्लास में अपना पहला कदम रखा था, तुम सच में किसी परी से कम नहीं हो, मैंने जितना भी समय तुम्हारे साथ जिया वो अनमोल था, जिसे मैं शब्दों से कभी शायद बयां भी ना कर पाऊँ, लेकिन हमारे रिश्ते को कभी भी मैं एक नाम नहीं दे पाया और ना ही आगे कभी दे पाऊँगा, क्यूंकि तुम एक मुस्लिम परिवार मे जन्मी हो और मैं एक हिंदू, हमारे रीति रिवाज़, समाज, लोग, हर कोई जो भी इस समाज का हिस्सा है हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे,
और सही मायने में मुझे इस समाज से ज्यादा कुछ फर्क भी नहीं पड़ता लेकिन मैं नहीं चाहता कि मैं जास्बाती होकर कोई ऐसा फैसला कर बैठूं जिसकी सज़ा हमारे रिश्ते , और हम दोनों के परिवार को मिले, लेकिन मैं अपने दिल में छुपी अपनी भावनाओं को दबा कर नहीं रखना चाहता था, इसलिए सब कुछ इस खत में लिख रहा हूँ,, और हाँ एक बात और मेरा दुबई का वीजा लग गया है, और मैं आज शाम को ही जा रहा हूँ , लेकिन जाने से पहले तुम्हें एक बार देखना चाहता था.... इसलिए तंकि तुम्हारे चेहरे के हर एक भाव भंगिमा को अपने दिल में समेटकर हमेशा के लिए अपने साथ ले जा सकूँ... पहले ये सब नहीं बता पाया, क्यूँकि तुम्हें खोने से डरता था, लेकिन आज तुम्हें सब कुछ बता रहा हूँ, शायद आज मैं पूरी तरह तैयार हूँ.....बहरहाल अपना खयाल रखना, तुम्हारे आने वाले भविष्य के लिए शुभकामनायें....
तुम्हारा,
अमीश
.....आयशा ने खत को बंद किया, उसे चूमा और सर उसी डेस्क पर रखकर कुछ देर के लिए शांत बैठ गयी, लेकिन आयशा के चेहरे पर आँसुओं की बनी वो गहरी दो लकीरें सब कुछ बयां कर रही थी........सब कुछ.....
[Written by - Mayank Kumar]
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