वैराग्य- एक शांतिपूर्ण जीवन | Kya Hota Hai Vairagya Jeevan
Vairagya Jeevan
"सत्संगत्वे निस्संगत्वं,निस्संगत्वे निर्मोहत्वं। निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं,निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥"
भावार्थ : सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
हमारे सामने अक्सर कभी यह प्रश्न उठता है कि वैराग्य क्या है, क्या वैराग्य को पाया जा सकता है या फिर इसे कंट्रोल किया जा सकता है, या इसे योग सि्धधियों से जाना जा सकता है ऐसे ही की सारे प्रश्न हमारे मन के सागर में अक्सर गोते खाते हुए डूब जाते हैं जिन्हें हम जान भी नहीं पाते | कोई भी व्यक्ति वैराग्य को पाने के लिए क्या करे, कि वो इसे पा सके,कई वर्षों पूर्व जब इस धरती पर प्रभु अवतार कायम था जहा सुख शांति उन्नति हमेशा रहती थी, यदि युद्ध भी हुआ तो वो धर्म की रक्षा के लिए हुआ करता था, जिसमें भी मान मर्यादा का उचित ध्यान रखा जाता था | कई लोग बरहम्चार्य का पालन भी करते थे और मोह माया का त्याग भी देखने को मिलता था, मनुष्य वैरागी हो जाया करता था |
और जब जब मनुष्य उस परमात्मा की खोज में निकला है, जब जब उसने संसारिक सुखों का त्याग कर परमात्मा को जीवन सौंप दिया है, संसार के सभी सुख दुख त्याग दिए है तब तब वह वैरागी हो कर, वैराग्य को प्राप्त हुआ है, और अपनी इस मांस और हड्डियों की काया को प्रभु को सौंप कर अपनी आत्मा को पवित्र कर लेता है | लेकिन वैराग्य को पाना इतना भी आसान नहीं, वैराग्य को पाने के लिए मन को साफ कर सांसारिक सुखो व दुखों का त्याग कर कई वर्षो की कठिन तपस्या और अभ्यास से वैराग्य को पाया जा सकता है | लेकिन ये एक ऐसी स्थिति है जिसमें निरंतर अभ्यास करते रहने के उपरांत यह एक दिन खुद ही उस व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है और तब वह व्यक्ति परम आनंद की अनुभूति करता है, जिसके बाद उस परमआनंद के सामने सभी सांसारिक सुख एक तुच्छ सी चीज नजर आते हैं |
जो आनंद की अनुभूति प्रभु की भक्ति करके उनके प्रति जीवन समर्पित होने के पश्चात प्राप्त होती है शायद वैसी कोई अनुभूति इस जीवन में अभी तक किसी को प्राप्त ही नहीं हुई, इसलिए ही वैराग्य का स्थान सभी चीजों में सर्वोपरी है, यहीं कारण है कि धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में भी ऋषि मुनियों, साधु, फकीरों, बाबाओं का स्थान प्रभु की तरह मना जाता है क्यूंकि ये सभी वैरागी होते हैं,
और माना जाता है कि इनकी जुबान पर साक्षात भगवान् की वाणी विराजमान होती है, इसलिए सभी लोग साधुओं का सम्मान कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं ताकि उन्हे प्रभु के किसी प्रिय से आशीर्वाद मिल सके और उनके कार्य सफल हो सकें, अंततः बस यही कहूंगा कि वैराग्य का स्थान सभी गुणों मे उत्तम है क्योंकि यह सीधा परमात्मा से उत्पन्न और परमात्मा में ही विलीन हो जाता है |
[Written By-Mayank Kumar]
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