मोक्ष (moksha) क्या है | मोक्ष की परिभाषा
मोक्ष (moksha) क्या है..!!
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||"
अर्थ- हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं, जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
मोक्ष क्या है और हम मरने के उपरांत इसे क्यू पाना चाहते हैं, क्या किसी की मृत्यु के पश्चात यदि पंडितों को दक्षिणा, दान और भोजन कराया जाए तो ये मर चुके व्यक्ति को मोक्ष दे देगा, या फिर पंडितों द्वारा कराए गए यग्य और पूजा विधान से मरे हुए व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी | कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा की मोक्ष (moksha) की प्राप्ति के लिए उस व्यक्ति का शराद कराया जाता है उसके नाम का पिंड भी दिया जाता है और उसके नाम से पूजा कराई जाती है ताकि उस व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिल सके | लेकिन आखिरकार ये मोक्ष है क्या, और इसे मरणोपरांत कैसे पाया जा सकता है ये एक बड़ा प्रश्न है, हमारे शास्त्रों और उपनिष्दों में मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता बताया गया है | सीधे शब्दों में कहें तो जीवन मरण के इस चक्र को भेद कर परमात्मा के परमधाम में विलुप्त हो जाना ही मोक्ष है |
भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने मोक्ष को पाने के बारे में अर्जुन को बताया था तथा मानव शरीर, आत्मा और जीवआत्मा का भी ग्यान दिया था | जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा था कि मोक्ष क्या है और इसे कैसे पाया जा सकता है तब भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि मनुष्य क्या करे जिससे वह इसे पा सके, मानव दो योनियों से होकर गुजरता है एक मरने से पहले यानी धरती पर जिसे कर्म योनि कहा जाता है जहां वह कर्म करता है और सांसारिक सुख दुख को देखता है और मर जाता है, और दूसरी तरफ मरने के बाद यानी भोग योनि इस योनि में मनुष्य अपने द्वारा किए कर्मों का फल अच्छा या बुरा भोगता है इसलिए इसे भोग योनि कहा जाता है, यदि मनुष्य अच्छे कर्म करता है तो उसे स्वर्ग में जगह मिलती है जहां वह देवताओं के बीच रहकर सुख भोगता है, वहीं अच्छे कर्म नहीं करने वाले मनुष्य को नर्क में जगह मिलती है जहां वह दुख भोगता है और राक्षस प्रवर्ती के बीच दुखों और प्रतड़ऩाओं को भोगता है |
और फिर फल भोग लेने के बाद वह वापिस वह इस धरती पर जन्म लेता है और यह चक्र सदैव चलता ही रहता है, लेकिन जब मनुष्य अपने इस जीवन मरण के चक्र को तोड़ कर उस प्रभु के परम धाम में पहुंच जाता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है | अर्थात इस जीवन मरण के चक्र का अंत ही मोक्ष (moksha) कहलाता है, हम इस धरती पर दुबारा जन्म तभी लेते हैं जब मरते समय हमारी कोई इच्छा होती है या हमारी कोई अभिलाषा पूर्ण नहीं हो पाती, यदि हम मरते समय पूरे मन से सिर्फ प्रभु का ध्यान कर लें और हमारे मन में कोई वासना, इच्छा, लालच, मोह इत्यादि कुछ भी ना हो तो निश्चित ही हम मोक्ष की प्राप्ति करेंगे |
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भागवत गीता में कहा है कि मनुष्य दोबारा जन्म तभी लेता है जब उसकी इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती और वो मरते समय भी अपनी उस इच्छा को पूर्ण होने के सपने देखता रहता है, उसी इच्छा को पूर्ण करने के लिए मनुष्य दोबारा इस धरती पर जन्म लेता है, और जब तक ऐसा नहीं होता है यह जीवन मरण का चक्र बस यूँ ही चलता ही रहता है, अर्थात मोक्ष का द्वार सिर्फ परमधाम है, यानी प्रभु नारायण का धाम, उनमे विलुप्त हो जाना, उनको पा लेना, उनसा ही हो जाना यही तो मोक्ष (moksha) है |
[ Written By- Mayank Kumar]
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